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कोरोना संक्रमित की मृत्यु के प्रति व्यवहार में परिवर्तन की है जरूरत

tds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_show चन्दौली जिले में बदलना होगा लोगो को नजरिया, मौत के चार घंटे बाद कम हो जाता है शव से संक्रमण फैलने का खतरा। सीफार के सहयोग से आयोजित राष्ट्रीय व बेव सेमिनार में विषय-विशेषज्ञों ने निष्कर्ष निकल है। कोविड-19 संक्रमित मृतक के शरीर की व्यवस्था और अंतिम संस्कार से जुड़ी विज्ञप्ति विषयक राष्ट्रीय कार्यशाला में
 
कोरोना संक्रमित की मृत्यु के प्रति व्यवहार में परिवर्तन की है जरूरत

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चन्दौली जिले में बदलना होगा लोगो को नजरिया, मौत के चार घंटे बाद कम हो जाता है शव से संक्रमण फैलने का खतरा। सीफार के सहयोग से आयोजित राष्ट्रीय व बेव सेमिनार में विषय-विशेषज्ञों ने निष्कर्ष निकल है।

कोविड-19 संक्रमित मृतक के शरीर की व्यवस्था और अंतिम संस्कार से जुड़ी विज्ञप्ति विषयक राष्ट्रीय कार्यशाला में निष्कर्ष निकला कि लोगों को कोरोना संक्रमित के प्रति नजरिया बदलना होगा।

अगर इस बीमारी से किसी की मौत हो जाती है तो उसके शव के प्रति भी व्यवहार में परिवर्तन की जरूरत है। मौत के बाद संक्रमित शव से संक्रमण का खतरा चार घंटे बाद कम हो जाता है। बावजूद इसके अगर शव के अंतिम संस्कार में शामिल हो रहे हैं तो केंद्र सरकार की ओर से बताए गए साफ-सफाई के तौर तरीकों को अपनाना चाहिए। हालात से डरने की नहीं है, बल्कि एहतियात के साथ मजबूती से लड़ने की जरूरत है।

सेंटर फार एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) संस्था के सहयोग से कोविड-19 ‘‘संक्रमित मृतक के शरीर की व्यवस्था और अंतिम संस्कार से जुड़ी विज्ञप्ति’’

विषयक इस राष्ट्रीय में उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, नई दिल्ली समेत कई राज्यों के विषय-विशेषज्ञों और मीडिया ने कोविड-19 के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। शुभारंभ पर सीफॉर की तरफ से सभी पैनलिस्ट का स्वागत करते हुए।

संस्था की निदेशक अखिला शिवदास ने विषय की गंभीरता के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि संक्रमित शव के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार होना चाहिए। देश में कोरोना संक्रमित के शवों के प्रति कई ऐसी घटनाएं प्रकाश में आई हैं जो चिंता का विषय हैं।

इस संबंध में समाज के नजरिये में बदलाव लाना होगा। प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डा. वंदना प्रसाद ने कहा कि स्वस्थ होना, जीना-मरना मानव जीवन का हिस्सा है। कोरोना मृतक के प्रति भेदभाव ठीक नहीं है। मृत शरीर से किसी को कोई दिक्कत नहीं है। जिस प्रकार कपड़े और कागज पर ज्यादा देर वायरस नहीं टिकता है। उसी प्रकार शव पर भी अधिकतम चार घंटे तक ही वायरस टिक सकता है।

लोकप्रिय विज्ञान और जनता की आवाज के लिए एक प्रमुख आवाज के तौर पर पहचान रहने वाले डा. टी सुंदर रमन ने कोरोना संक्रमित के शव के प्रति समाज में फैले भय और भ्रांतियों का खंडन किया। उन्होंने कहा कि अभी तक कोरोना के जितने मामले आए हैं उनमें से किसी भी मृत शरीर के कारण कोरोना फैलने का अभी तक का कोई भी केस दर्ज नहीं हुआ है। हम सुरक्षा के लिए शवों को गले लगाने से बच सकते हैं लेकिन आवश्यक दूरी और सावधानियों के साथ हमें शवों का सम्मान करना चाहिए। इससे कोरोना का संक्रमण नहीं होता है।

आईआईटी दिल्ली में प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. दिनेश मोहन ने बताया कि चूंकि शव सांस नहीं लेते, न छींक सकते हैं, न खांस सकते हैं, न हंस सकते हैं और न ही जोर से बोल सकते हैं, ऐसे में संक्रमित के शव से संक्रमण का खतरा नहीं है। लोगों को चाहिए कि शव के बारे में अनावश्यक भ्रांति न पालें। मृतक शरीर किसी के लिए खतरा नहीं होता है, बस आवश्यक सावधानियां रखनीं होंगी।

मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. जॉन दयाल ने कहा कि जब तक कोरोना संबंधित रिपोर्ट नहीं आती है तब तक लोग उस व्यक्ति के नजदीक रहते हैं और पाजीटिव रिपोर्ट आते ही व्यवहार बदल देते हैं। संक्रमण से मौत के बाद बदले व्यवहार की जो घटनाएं आई हैं, वह दुखद हैं। दाह-संस्कार या दफनाने के बाद तो संक्रमण के प्रसार का कोई सवाल ही नहीं उठता है लेकिन फिर भी भय का माहौल है जिसे दूर करने होगा। यह ध्यान रखना होगा कि शव से किसी को कोई बीमारी नहीं होती है।

संचालन कर रहे मानवाधिकार कार्यकर्ता नताशा बधवार ने कहा कि यह एक मानवीय संकट है। संक्रमित की मृत्यु के बाद अपेक्षित सम्मान मिलना चाहिए। तमाम भ्रांतियां हैं जिन्हें दूर करना होगा। इस कार्य में मीडिया का अहम योगदान हो सकता है।

मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने कहा कि भय और भ्रांतियों से निपटने के सिर्फ दो ही तरीके हैं। एक तो विज्ञान और दूसरी सटीक सूचना। इन दोनों तरीकों से लोगों के बीच फैले भय और भ्रांति को समाप्त करना होगा। कार्यक्रम के दौरान मीडिया की तरफ से कोरोना संबंधित कई सवाल किए गए जिनका अलग-अलग पैनलिस्ट ने जवाब दिया।

मां-बाप, बच्चे और जीवन साथी भी नहीं दे रहे साथ विशेषज्ञों ने कहा कि पिछले तीन महीने में ऐसे मामले सामने आए जिनमें कोरोना संक्रमित लोग अपने अंतिम समय में अपने मां-बाप, बच्चे या जीवनसाथी का साथ नहीं पा सके। कोरोना संक्रमण के भय से परिवार के लोगों को इनसे दूरी बनानी पड़ी। कोरोना की संक्रामक प्रवृत्ति और अस्पतालों के निर्देश के कारण बहुत लोग चाहकर भी अपने प्रियजनों के अंतिम समय में उनके साथ नहीं रह सके।

सम्मानजनक तरीके से विदा लेने का हर व्यक्ति का अधिकार हर एक व्यक्ति को अधिकार है कि सम्मानजनक तरीके से अपने परिजनों से विदा ले। हमारे लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि मृतकों का अंतिम संस्कार परिजनों द्वारा किए जाने में कोई ख़तरा नहीं है। उन्हें दफ़नाने या उनका दाह संस्कार करने से कोरोना का संक्रमण नहीं फैलता है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने मृतकों को दफनाने के संबंध में 15 मार्च को एक विस्तृत दिशानिर्देश जारी किया था। इसमें साफ तौर पर कहा गया था कि मृतक के परिजन अंतिम बार अपने प्रियजन का दर्शन कर सकते हैं। इसमें वैसे सभी धार्मिक कार्यों की भी अनुमति दी गई थी, जिन्हें बिना शारीरिक संपर्क के पूरा किया जा सकता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण का सहारा लें
विशेषज्ञों ने इस भ्रम को दूर करने के लिए एक खुला पत्र देश के नागरिकों के नाम लिखा है। जिसमें कहा गया है कि हम यह खुला पत्र अपने देश के नागरिकों के नाम लिख रहे हैं। हमारा उद्देश्य है कि कोरोना के ख़िलाफ़ जंग में हमारे भाई-बहन वैज्ञानिक दृष्टिकोण का सहारा लें। इस पत्र के माध्यम से हम उन सभी परिवारों के साथ संवेदना भी जताना चाहते हैं जिन्होंने किसी अपने को खोया है। शोक के इस समय में हम उन परिवारों के साथ कदम से कदम से मिलाकर खड़े हैं और हम उन्हें यह बताना चाहते हैं कि विज्ञान ने कभी नहीं कहा है कि अंतिम संस्कार से पहले अपने मृत प्रियजन को ना देखें। साथ ही अगर वे शारीरिक संपर्क में आए बिना कोई अंतिम धार्मिक कार्य या अंत्येष्टि करना चाहते हैं तो इसके लिए भी कोई रोक-टोक नहीं है।

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