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चंदौली जिले के अफसर नहीं खोज पाए 391 मुख्यमंत्री आवास के पात्र, सरेंडर करने पड़े आवास

tds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_show चंदौली जिले में लोगों को कई योजनाओं का लाभ सरकारी अफसरों की लापरवाही से नहीं मिल पाता है। प्रदेश सरकार बेघरों को छत मुहैया कराने के लिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास योजना चला रही है, लेकिन विभागीय अधिकारियों-कर्मचारियों की सुस्ती के चलते गरीबों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। शासन ने अतिपिछड़े जिले
 
चंदौली जिले के अफसर नहीं खोज पाए 391 मुख्यमंत्री आवास के पात्र, सरेंडर करने पड़े आवास

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चंदौली जिले में लोगों को कई योजनाओं का लाभ सरकारी अफसरों की लापरवाही से नहीं मिल पाता है। प्रदेश सरकार बेघरों को छत मुहैया कराने के लिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास योजना चला रही है, लेकिन विभागीय अधिकारियों-कर्मचारियों की सुस्ती के चलते गरीबों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।

शासन ने अतिपिछड़े जिले में मुख्यमंत्री आवास के लिए 1191 का लक्ष्य आवंटित किया था, लेकिन विभाग पात्रों को नहीं ढूंढ सका। इससे 391 आवास सरेंडर करने पड़े। फिलहाल केवल 800 लाभार्थियों को योजना का लाभ मिल पाएगा।

कहा जा रहा है कि कोरोना काल में आवास योजना के तहत लक्ष्य आवंटन की प्रक्रिया ठप रही। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के दौर में शासन स्तर से प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास के लिए लक्ष्य आवंटित किया गया। मुख्यमंत्री आवास के लिए जिले में 1191 आवास का लक्ष्य आवंटित हुआ था।

इसके तहत मुसहर यानी वनवासियों को योजना से लाभान्वित करने के निर्देश मिले थे। ग्राम्य विकास विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों को पात्रों को ढूंढने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, लेकिन बीडीओ और सचिव लक्ष्य के सापेक्ष पात्र नहीं ढूंढ सके।

इसके कारण चंदौली जिले को 391 मुख्यमंत्री आवास सरेंडर करने पड़े। इसमें 291 पात्रों को प्रधानमंत्री आवास का लाभ पहले ही मिल चुका है। जिले में 800 लाभार्थियों को मुख्यमंत्री आवास योजना का लाभ दिया गया है। इसमें 50 फीसदी लाभार्थियों के खाते में पहली किस्त भी पहुंच चुकी है।

मुसहरों के पास नहीं है जमीन

मुख्यमंत्री आवास योजना के लिए पात्र माने जाने वाले मुसहर, वनवासियों के पास जमीन ही नहीं है। अधिकांश वन विभाग की भूमि पर जंगलों में आबाद हैं। वहीं ग्राम पंचायत की जमीन पर भी उन्हें पट्टा नहीं मिला है। बिना जमीन के आवास का आवंटन शासन की गाइडलाइन के विपरीत है। ऐसे में विभाग के लिए पात्र ढूंढना कठिन हो जाता है।

बताया जा रहा है कि इस मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत लाभार्थियों को घर बनवाने के लिए तीन किस्तों में 1.30 लाख रुपये दिए जाते हैं। इसके अलावा 90 दिनों की मनरेगा मजदूरी और शौचालय निर्माण को सरकार 12 हजार रुपये अलग से देती है।

परियोजना निदेशक सुशील कुमार का कहना है कि जिले में मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत 1191 का लक्ष्य आवंटित किया गया था। पात्र न मिलने की वजह से 391 आवास सरेंडर कर दिया गया। 800 लोगों को योजना का लाभ मिला है। इसमें 50 फीसदी के खाते में आवास की पहली किस्त पहुंच चुकी है।

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