होलिका दहन का शुभ मुहूर्त आज रात 9 बजकर 28 मिनट से रात 11.58 बजे तक है। ऐसे में साढ़े नौ बजे के बाद से रात 12 बजे के अंदर तक किसी भी समय होलिका दहन कर सकते है। पुरोहितों की माने तो शुभ मुहूर्त में होलिका दहन करने से पाप का विनाश के साथ ही धन पुण्य की प्राप्ति होती है। जिले में इस बार कुल 1569 जगहों पर होलिका स्थापित की गई है। पुलिस प्रशासन ने 53 जगहों के होलिका को संवेदनशील व 14 अतिसंवेदनशील की श्रेणी में रखा है। होलिहा दहन शांति ढंग से कराने की रणनीति बना ली है। संवेदनशील व अति संवेदनशील क्षेत्रों में पुलिसकर्मियों की तैनाती रहेगी। पंडित त्रिपुरारी मिश्रा ने बताया कि बुधवार को सुबह 10.44 से रात 8.59 बजे तक भद्रा है। होलिका दहन भद्रा के बाद ही करना शुभ माना जाता है। रात 9 बज कर 28 मिनट से रात 11:58 तक तीन घंटे ही होलिका दहन का शुभ मुहूर्त है। कहा कि होलिका दहन के पूर्व सबसे पहले माता होलिका की विधिवत व शास्त्रवत पूजा करनी चाहिए। सम्मत में शुद्ध हवन सामग्री, कपूर, चंदन की कुछ लकड़ी डाली जाती है। इसके बाद सामूहिक भक्ति गीत गाकर होलिका माता को प्रसन्न कर दहन किया करना चाहिए।

होली का दिन चंद्रमा का प्रागट्य दिन है | जो लोग सदा किसी न किसी दुःख से पीड़ित रहते हो , तो दुःख और शोक दूर करने के लिए विष्णु-धर्मोत्तर ग्रंथ में बताया है कि होली के दिन भगवान के भूधर स्वरुप अर्थात पृथ्वी को धारण करनेवाले भगवान का ध्यान और जप करना चाहिये | मंत्र बोलना चाहिये होली के दिन इनका विशेष माहात्म्य और फायदे हैं –
ॐ भूधराय नम:….. ॐ भूधराय नम: ….. ॐ भूधराय नम:
नीचे श्लोक एक बार बोलना और भगवान को, गुरु को विशेषरूप से प्रणाम और पूजन कर लें –
धरणीम् च तथा देवीं अशोकेती च कीर्तयेत् |
यथा विशोकाम धरणी कृत्वान्स्त्वां जनार्दन: ||
( हे भगवान जब जब भी पृथ्वी देवी असुरों से पीड़ित होकर आपको पुकारती है , तब तब आप राक्षसों का वध करते हैं और पृथ्वी को धारण करके उसका शोक दूर कर देते हैं | ऐसे आप भगवान मेरे भी शोक, दुःख आदि का हरण करें और मुझे धारण करें | ) खाली होली के दिन ये करें |
होली की रात को चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिये | जिनके घर में पैसों की तंगी रहती है, आर्थिक कष्ट सहना पड़ता है | तो होली के रात दूध और चावल की खीर बनाकर चंद्रमा को भोग लगाये | पानी, दूध, शक्कर, चावल मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य दे , दिया जलाकर दिखायें और थोड़ी देर चंद्रमा की चाँदनी में बैठकर गुरुमंत्र का जप करें | और प्रार्थना करें हमारे घर का जो आर्थिक संकट है वो टल जायें, कर्जा है तो उतर जाये | होली की रात फिर बैठकर जप करें बहुत फायदा होगा | चंद्रमा उदय होने पर चंद्रमा में भगवान विष्णु, लक्ष्मी और सूर्य की भावना करके अर्घ्य देना चाहिये , कि सामने भगवान विष्णु ही बैठे हैं | भगवान ने गीता में कहा ही है कि नक्षत्रों का अधिपति चन्द्रमा मैं ही हूँ | ये शास्त्रों की बात याद रखें कि दुःख की और कर्जे की ताकत नहीं कि उस आदमी के सिर पर बना रहे |

श्रीर्निषा चन्द्र रुपस्त्वं वासुदेव जगत्पते |
मनोविलसितं देव पूर्यस्व नमो नमः ||
ॐ सोमाय नम: |
ॐ नारायणाय नम: |
ॐ श्रीं नम: |
होलिका ने प्यार के खातिर क्यों अपना जीवन दे दिया बलिदान ?
होली पर्व के साथ ही जुड़ी है होलिका की कहानी। या यूं कहें कि होलिका की वजह से ही रंग-गुलाल के इस पर्व का नाम होली पड़ा तो यह कहना गलत नहीं होगा। होली को यूं तो बुराई का प्रतीक मानते है और होलिका जलाकर बुराई के अंत का उत्सव मनाते है। लेकिन सच यह भी है कि होलिका को जलाने से पहले उसकी पूजा की जाती है। होलिका अगर वास्तव में बुराई की प्रतीक होती तो उसकी पूजा नहीं की जाती। हिमाचल के लोककथाओं में होलिका की वह कहानी मिलती है जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे और कहेंगे होली बुराई की प्रतीक नहीं बल्कि प्रेम की देवी थी जिसने प्यार की खातिर अपने जीवन का बलिदान दे दिया। आइए जानें होलिका की वह अनजानी अनसुनी कहानी। होलिका राक्षस कुल के महाराज हिरण्यीकश्यप की बहन थी। यह अग्निदेव की उपासक थी। अग्निदेव से इन्हें वरदान में ऐसा वस्त्र मिला था जिसे धारण करने के बाद अग्नि उन्हें जला नहीं सकती थी। बस इसी बात के चलते हिरण्य्कश्यप ने उन्हेंं यह आदेश दिया कि वह उनके पुत्र प्रह्लाद यानी कि होलिका के भतीजे को लेकर हवन कुंड में बैठें। भाई के इस आदेश का पालन करने के लिए वह प्रहलाद को लेकर अग्नि कुंड में बैठ गईं। इसके बाद ईश्वइर की कृपा से इतनी तेज हवा चली कि वह वस्त्र होलिका के शरीर से उड़कर भक्त प्रहलाद के शरीर पर गिर गया। इससे प्रहलाद तो बच गए लेकिन होलिका जलकर भस्म हो गईं। लेकिन होलिका के अग्नि में बैठने के पीछे जो कथा है उसे कम लोग ही जानते है। कथा के अनुसार होलिका इलोजी नाम के राजकुमार से प्रेम करती थी। इन दोनों ने विवाह की योजना भी बना ली थी। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन इलोजी बारात लेकर होलिका से विवाह करने आने वाला था। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। हिरण्यकश्यप ने होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर चिता पर बैठ जाए। अग्नि देव के वरदान के कारण तुम्हें कुछ नहीं होगा लेकिन प्रह्लाद जल जाएगा। होलिका इस क्रूर काम के लिए तैयार नहीं हुई तो हिरण्यकश्यप ने होलिका को यह भय दिखाया कि अगर उसने आदेश का पालन नहीं किया तो इलोजी के साथ विवाह नहीं होने देंगे और इलोजी को दंडित भी करेंगे। अपने प्रेम को बचाने के लिए होलिका ने आदेश का पालन किया और चिता पर प्रह्लाद को लेकर बैठ गई। लेकिन चुपके से प्रह्लाद को अग्निदेव के वरदान से बचा लिया और खुद जलकर खाक हो गई। इलोजी इन सब बातों से अंजान जब होलिका से विवाह करने बारात लेकर आया तो सामने होलिका की राख देखकर व्याकुल हो उठा और हताश होकर वन में चला गया।
होली पूजने की सामग्री –
गोबर से बने बड़कूले , रोली , मौली , अक्षत , अगरबत्ती , फूलमाला , कच्चा सूत , गुड़ , साबुत हल्दी , मूंग-चावल , फूले , बताशे , गुलाल ,
नारियल , जल का लोटा , गेहूं की नई हरी बालियां , हरे चने का पौधा आदि।
बड़कूले ( भरभोलिए ) कितने होने चाहिए
होली से दस बारह दिन पहले शुभ दिन देखकर गोबर से सात बड़कूले बनाये जाते है। गोबर से बने बड़कूले को भरभोलिए भी कहा जाता है। पाँच बड़कूले छेद वाले बनाये जाते है ताकि उनको माला बनाने के लिए पिरोया जा सके।
दो बड़कूले बिना छेद वाले बनाये जाते है । इसके बाद गोबर से ही सूरज , चाँद , तारे , और अन्य खिलौने बनाये जाते है। पान , पाटा , चकला , एक जीभ , होला – होली बनाये जाते है। इन पर आटे , हल्दी , मेहंदी , गुलाल आदि से बिंदियां लगाकर सजाया जाता है। होलिका की आँखें चिरमी या कोड़ी से बनाई जाती है। अंत में ढाल और तलवार बनाये जाते है। बड़कूले से माला बनाई जाती है। माला में होलिका , खिलोंने , तलवार , ढाल आदि भी पिरोये जाते है। एक माला पितरों की , एक हनुमान जी की , एक शीतला माता की और एक घर के लिए बनाई जाती है। बाजार से तैयार माला भी खरीद सकते है। यह पूजा में काम आती है।
पूजन करने का तरीका
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पूजन करते समय आपका मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए।
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जल की बूंदों का छिड़काव आसपास तथा पूजा की थाली और खुद पर करें।
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इसके पश्चात नरसिंह भगवान का स्मरण करते हुए उन्हें रोली , मौली , अक्षत , पुष्प अर्पित करें।
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इसी प्रकार भक्त प्रह्लाद को स्मरण करते हुए उन्हें रोली , मौली , अक्षत , पुष्प अर्पित करें।
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इसके पश्चात् होलिका को रोली , मौली , चावल अर्पित करें , पुष्प अर्पित करें , चावल मूंग का भोग लगाएं। बताशा , फूले आदि चढ़ाएं।