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शरद पूर्णिमा के दिन खीर का है खास महत्व, अमृत पान करने का मिलता है मौका

tds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_show वैसे तो सभी पूर्णिमा अपने आप में एक विशेष स्थान रखती है पर शरद पूर्णिमा का खास महत्व होता है। शारदीय नवरात्रि के खत्म होने के बाद शरद पूर्णिमा आती है। हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि पर शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। इस बार यह 13 अक्टूबर को मनाई जा रही है।
 

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वैसे तो सभी पूर्णिमा अपने आप में एक विशेष स्थान रखती है पर शरद पूर्णिमा का खास महत्व होता है। शारदीय नवरात्रि के खत्म होने के बाद शरद पूर्णिमा आती है।

हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि पर शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। इस बार यह 13 अक्टूबर को मनाई जा रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन चांद अपनी 16 कलाओं से पूरा होकर रातभर अपनी किरणों से अमृत की वर्षा करता है। माना जाता है कि इस दिन खीर को खुले में रखने से ओस के कण के रूप में अमृत बूंदें खीर के पात्र में भी गिरेंगी जिसके फलस्वरूप यही खीर अमृत तुल्य हो जायेगी, जिसको प्रसाद रूप में ग्रहण करने से प्राणी आरोग्य एवं कांतिवान रहेंगे।

खीर का यह है वैज्ञानिक तथ्य

शरद पूर्णिमा की रात को छत पर खीर को रखने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी छिपा है। खीर दूध और चावल से बनकर तैयार होता है। दरअसल दूध में लैक्टिक नाम का एक अम्ल होता है। यह एक ऐसा तत्व होता है जो चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। वहीं चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया आसान हो जाती है। इस खीर का सेवन सेहत के लिए महत्वपूर्ण बताया जाता है।

शरद पूर्णिमा लक्ष्‍मी माता का जन्‍मदिन

दीपावली से पहले शरद पूर्णिमा लक्ष्‍मी माता के जन्‍मदिन के तौर पर मनाई जाती है। आश्विन मास के शुक्‍ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के को शरद पूर्णिमा के तौर पर मनाया जाता है। पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार, इस दिन धन की देवी मां लक्ष्‍मी समुद्र मंथन से उत्‍पन्‍न हुई थीं। इसलिए यह दिन विशेष रूप से माता लक्ष्‍मी को ही समर्पित होता है। इस अवसर मां लक्ष्‍मी को प्रिय इन 5 वस्‍तुओं का भोग लगाने और इसे प्रसाद स्‍वरूप बांटने व स्‍वयं खाने से धन, समृद्धि में वृद्धि होती है और मां लक्ष्‍मी की विशेष कृपा भी प्राप्‍त होती है।

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