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Jitiya Vrat 2019 : जिउतिया व्रत का पौराणिक इतिहास व पूजा का समय

tds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_show इस बार संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाने वाला व्रत जितिया दो दिन रखा जाता रहा है। अलग-अलग पंचांगों के अनुसार व्रत की तारीख अलग-अलग है। बनारस पंचांग से चलने वाले श्रद्धालु 22 सितम्बर को जिउतिया व्रत रखेंगे और 23 सितम्बर की सुबह पारण करेंगे। वहीं मिथिला और विश्वविद्यालय पंचांग दरभंगा से चलनेवाले श्रद्धालु
 

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इस बार संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाने वाला व्रत जितिया दो दिन रखा जाता रहा है। अलग-अलग पंचांगों के अनुसार व्रत की तारीख अलग-अलग है।  बनारस पंचांग से चलने वाले श्रद्धालु 22 सितम्बर को जिउतिया व्रत रखेंगे और 23 सितम्बर की सुबह पारण करेंगे। वहीं मिथिला और विश्वविद्यालय पंचांग दरभंगा से चलनेवाले श्रद्धालु 21 सितम्बर को व्रत रखेंगे और 22 सितंबर की दोपहर तीन बजे पारण करेंगे। यह व्रत निर्जला रखा जाता है। आपको बता दें कि इस व्रत का संबंध महाभारत काल से भी है।

कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था। उसके हृदय में बदले की भावना भड़क रही थी। इसी के चलते वह पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला। वे सभी द्रोपदी की पांच संतानें थीं। फिर अर्जुन ने उसे बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली। अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को गर्भ को नष्ट कर दिया। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा। तब से ही संतान की लंबी उम्र और मंगल के लिए जितिया का व्रत किया जाने लगा।

 पौराणिक कथा और मान्यता

गन्धर्वराज जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे। युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में पिता की सेवा करने चले गए थे। एक दिन भ्रमण करते हुए उन्हें नागमाता मिली, जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है, वंश की रक्षा करने के लिए वंश ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा। इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है। नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है और उन्होंने ऐसा ही किया। गरुड़ ने जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ चला। जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया। जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को ना खाने का भी वचन दिया।

अपने पुत्र की मंगल कामना करते हुए महिलाएं जितिया व्रत का उपवास रखती हैं। इस व्रत को मुख्य रुप से महिलाएं बिहार और उत्तरप्रदेश में रखती हैं। जीवित्पुत्रिका या जिउतिया व्रत आज नहाय-काय के साथ शुरु हो गया है । इस दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला उपवास करके अपने पुत्र की लंबी आयु और अच्छी सेहत के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हैं।

उपवास की शुरुआत 
हिंदू धर्म में पूजा पाठ के दौरान आमतौर पर मांसाहार करना वर्जित माना जाता है। लेकिन बिहार के कई क्षेत्रों में जितिया व्रत के उपवास की शुरुआत मछली खाने से होती है। इस मान्यता के पीछे चील और सियार से जुड़ी जितिया व्रत की एक पौराणिक कथा है।

इसके अलाावा नहाय खाय के दिन गेंहू की जगह मरुए के आटे से बनी रोटी बनाने की भी परंपरा काफी प्रचलित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा करना बेहद शुभ माना जाता है।

बिहार के मिथिलांचल में तो इस व्रत में मरुआ के आटे की रोटी के साथ झिंगनी की सब्जी और नोनी का साग बनाने की परंपरा सदियों पुरानी है।

पुत्र की लंबी उम्र के लिए

महिलाएं अपने पुत्र की अच्छी सेहत और लंबी उम्र के लिए जितिया व्रत का उपवास करती हैं। यह व्रत खासतौर पर बिहार और उत्तरप्रदेश में रखा जाता है।

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