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जिला पंचायत सदस्य बनने के लिए पानी की तरह पैसा बहा रहे ठेकेदार, यह है टारगेट

tds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_show चंदौली जिले के जिला पंचायत सदस्य के चुनाव को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं लोगों में व्याप्त है। चुनाव लड़ने की दौर में कुछ ऐसे लोग शामिल हो रहे हैं, जिनका राजनीति से दूर दूर तक कोई कनेक्शन नहीं है। सिर्फ वह ठेकेदारी के लिए जाने जाते हैं, लेकिन अब जब उन्होंने ठेकेदारी के जरिए अच्छा
 
जिला पंचायत सदस्य बनने के लिए पानी की तरह पैसा बहा रहे ठेकेदार, यह है टारगेट

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चंदौली जिले के जिला पंचायत सदस्य के चुनाव को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं लोगों में व्याप्त है। चुनाव लड़ने की दौर में कुछ ऐसे लोग शामिल हो रहे हैं, जिनका राजनीति से दूर दूर तक कोई कनेक्शन नहीं है। सिर्फ वह ठेकेदारी के लिए जाने जाते हैं, लेकिन अब जब उन्होंने ठेकेदारी के जरिए अच्छा खासा माल कमा लिया है तो उन की लालसा अब खुद जिला पंचायत सदस्य बनने की हो गई है, ताकि अपने ठेकेदारी के काम को और बेहतर तरीके से अंजाम दे सकें।

चंदौली में ऐसी चर्चा है कि यहां 90 से 95 प्रतिशत पंचायत चुनाव लड़ने वाले लोग नेता नहीं बल्कि ठेकेदार हैं। इनका मूल काम ठेकेदारी है, राजनीति तो केवल लोगों को भरमाने के लिए करते हैं। इसी तरह के लोग वोट बटोरने के लिए चंदौली जिले में पंचायत चुनावों में खूब रुपए झोंक रहे हैं।

ये ठेकेदार लोग अपने गुर्गे लगाकर गांव-गांव में जबरदस्त तरीके से दारू-मुर्गा, भोज-भात के साथ-साथ नगदी बांटने के रेट तय कर रहे हैं। कई जगहों पर दावतें शुरू हो गई हैं और कई जगह पर दावतों की योजना इस तरह बनाई जा रही है कि काम भी हो जाय व जिला प्रशासन को खबर भी न लगे।

आमतौर पर समाजसेवा के नाम पर पैसा खर्च करके लोग अपना प्रचार-प्रसार करने के लिए नयी नयी गणित लगा रहे हैं और उसको खर्च करने के बाद उससे कई गुना वसूलने की योजना अभी से बना रहे हैं। यह काम करने में ठेकेदारों को सबसे ज्यादा मजा आ रहा है। कई ठेकेदार तो लोगों को पैसा खर्च करके पैसा कमाने की गुणा-गणित भी समझा रहे हैं।

कहा जाता है कि जिला पंचायत एक ऐसी निर्माण की कार्यदायी संस्था है जहां से पूरे जिले में काम करने के लिए सर्वाधिक धन का आवंटन होता है। यह धन जिला पंचायत सदस्यों की सहमति से अलग-अलग जगहों पर खर्च होता है और इसमें जबरदस्त कमीशनखोरी होती है, जिसकी बंदरबांट नीचे से ऊपर तक बेधड़क तरीके से की जाती है।

चर्चा तो यह भी है कि 40 परसेंट कमीशन काट कर ही बाकी का काम किया जाता है और उसके बाद ठेकेदार के ऊपर होता है कि वह उसमें से अपने लिए कितना बचा लेता है।

आपको बता दें कि सामान्य तौर पर जिला पंचायत का वार्षिक बजट जिले के दो सांसद और चारों विधायकों की निधि से कई गुना अधिक होता है। किसी किसी साल से यह 100 करोड़ से लेकर 200 करोड़ के बीच चला जाता है और किसी साल यह धनराशि 200 करोड़ से भी पार चली जाया करती है। ऐसे में ठेकेदारों के लिए यह एक कामधेनु गाय की तरह है, जो माल कमाने के लिए आकर्षित कर रही है।

आपने देखा होगा कि इससे जुड़े जनप्रतिनिधि आए दिन माल कमा कर दो पहिया से चार पहिया पर चलने लगे हैं। चार पहिया पर चलने वाले लोग कई गाड़ियों के काफिले से चलने लगे हैं और कई गाड़ियों के काफिले से चलने वाले लोग अन्य राजनेताओं के काफिले के लिए गाड़ियों की सप्लाई करना शुरू कर दिए हैं, ताकि उनका कारोबार बेधड़क तरीके से चलता रहे और वह जिला पंचायत में आ रही निधि का इस्तेमाल अपने साथ-साथ अपने रहमो करम पर पलने वाले लोगों और अपने आकाओं को खुश करने के लिए कर सकें।

आमतौर पर माना जा रहा है कि जिला पंचायत के चुनाव में इनके द्वारा किए गए सारे खर्चे की क्षतिपूर्ति को अध्यक्ष पद के कैंडिडेट ही कर देंगे। उसके बाद बाकी सारा धन उनकी कमाई का ही होता है जो उन्हें प्रॉफिट की तरह दिखता है। ऐसे में वह 25 से पचास लाख फूंक देने से पीछे नहीं हटने वाले हैं। दस-पांच लाख तो वह पानी की तरह बहा देते हैं, जैसे कि इतने पैसे का उनके लिए कोई मोल ही नहीं है।

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