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कल्यानपुर में जारी है श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ, कथा भी है जारी

tds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_show चंदौली जिले के चहनियां इलाके के कल्यानपुर में आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के चौथे दिन भी शृद्धालुओं ने यज्ञ स्थल को प्रणाम कर परिक्रमा किया । कोई पांच फेरे तो कोई 21 या 51 फेरे लेकर पुण्य अर्जित करने में लगा देखा गया। वहीं श्रीमद्दभागवत कथा के दौरान सन्त लक्ष्मी प्रपत्र जीयर स्वामी ने
 
कल्यानपुर में जारी है श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ, कथा भी है जारी

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चंदौली जिले के चहनियां इलाके के कल्यानपुर में आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के चौथे दिन भी शृद्धालुओं ने यज्ञ स्थल को प्रणाम कर परिक्रमा किया । कोई पांच फेरे तो कोई 21 या 51 फेरे लेकर पुण्य अर्जित करने में लगा देखा गया।

वहीं श्रीमद्दभागवत कथा के दौरान सन्त लक्ष्मी प्रपत्र जीयर स्वामी ने कहा कि भगवान का भक्त उत्तरायण में मरे या दक्षिणायन में कोई फर्क नहीं पड़ता है। यदि हमारा लक्ष्य ठीक नहीं है तो उत्तरायण में मरकर भी फल को प्राप्त नहीं करेंगे। और यदि हमारा उदित लक्ष्य ठीक होगा तो हम दक्षिणायन में मरकर भी उत्तरायण का फल ले सकते है। कहा यदि मेरा भक्त है जिंदगी भर हमारा भजन किया है और मरते समय हमको याद नहीं किया तो भी मै अपने भक्तों को याद करता हूं। वह अपनी परम गति को प्राप्त करता है।

कहा कि जब सनक, सनंदन, सनातन, सनत् कुमार चारों भाईयों ने कहा कि हे भक्ति माता आप यह वरदान दीजिए कि जहां भी आपके भक्त रहे, उनके हृदय में आपका वास होना चाहिए। इस प्रकार जहां भक्ति रहेगी वहां भगवान आएंगे ही। जहां भगवान के भक्त होंगे वहां भगवान आएंगे ही। जहां भगवान की चर्चा होगी वहां भगवान आएंगे ही।

कोई भी व्यक्ति चाहे धूर्त हो, पापी पशु, पक्षी, कीट पतंग वह भी पाप मुक्त हो जाते है। परंतु उसे सबकुछ त्याग कर भागवत कथा सुनने का मन बनाना पड़ेगा। संकल्प लेना पड़ेगा अब मेरे द्वारा कोई गलत काम नहीं किया जाएगा। पहले के बुरे कर्मों पर पश्चाताप करें तभी ऐसा हो सकता है। श्रीमद्भागवत कथा ऐसी कथा है, जिसके सुनने से सबलोग अपने आप में शुद्ध हो जाते हैं।

भगवान के भक्तों के साथ अपराध करने पर भगवान भी माफ नहीं कर सकते है। भक्तों का अपमान भगवान माफ नहीं कर सकते है। उसे दण्ड भोगना ही पड़ेगा। जय विजय ने भी भगवान के भक्त का अपमान किया था। भगवान ने तीन जन्मों तक राक्षस बना दिया। राजा अम्बरीष को अकारण ही दुर्वासा ऋषि ने अपमान किया। तब भगवान ने दुर्वासा को माफ नहीं किया।

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